दुर्योधन ये एक गलती ना करता तो महाभारत जीत जाता : डॉ विवेक बिंद्रा
जब भी व्यक्ति जीवन में असफलता का सामना करता है तो वो उसका दोष या तो वक़्त को देता है या फिर किसी दूसरे व्यक्ति को देता है, लेकिन वो स्वयं के अंदर झाँककर देखने का प्रयास तक नहीं करता। जबकि उसकी असफलता का कारण उसकी अपनी अज्ञानता ही होती है क्योंकि उसने कभी भी अपनी […]
जब भी व्यक्ति जीवन में असफलता का सामना करता है तो वो उसका दोष या तो वक़्त को देता है या फिर किसी दूसरे व्यक्ति को देता है, लेकिन वो स्वयं के अंदर झाँककर देखने का प्रयास तक नहीं करता। जबकि उसकी असफलता का कारण उसकी अपनी अज्ञानता ही होती है क्योंकि उसने कभी भी अपनी ताकत और कमज़ोरियों पर गौर ही नहीं किया होता है ।
मतलब जिस व्यक्ति को अपनी कमियों और खूबियों का एहसास नहीं होता उसकी हार निश्चित है, ये बात भगवान श्रीकृष्ण ने भगवदगीता के अंदर भी कही है, गीता के पहले अध्याय के तीसरे श्लोक में इस बात को समझाया गया है।
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् ।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ।। ३।।
महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोण कौरवों की ओर से युद्ध लड़ रहे थे और पांडवों की ओर से द्रुपद के पुत्र दृस्टिद्युम सेनापति का कार्यभार संभाल रहे थे। दृस्टिद्युम का जन्म ही गुरु द्रोणाचार्य का वध करने के लिए हुआ था। लेकिन फिर भी उन्होंने दृस्टिद्युम को समस्त युद्ध विद्या का ज्ञान दे दिया था। इस पर दुर्योधन गुरु द्रोणाचार्य से कहते हैं, देखो जिस शिष्य को आपने युद्ध के लिए शिक्षा दी थी आज वही आपके सामने आकर खड़ा हो गया है।
ऐसा कहते समय दुर्योधन का तात्पर्य गुरु द्रोणाचार्य पर तंज कसना था। साथ ही ये एहसास दिलाना भी था कि आपने बहुत बड़ी गलती कर दी है। आप जानते थे कि दृस्टिद्युम आपकी मृत्यु का कारण बनेगा, लेकिन फिर भी आपने उसे शिक्षा दी।
यहाँ पर दुर्योधन जब गुरु द्रोणाचार्य को उनकी गलती का एहसास दिला रहे हैं। उनका अपमान कर रहे हैं लेकिन साथ ही साथ खुद भी एक गलती कर रहे हैं। इस अवसर पर दुर्योधन को गुरु द्रोणाचार्य को उनकी गलती और कमज़ोरी का एहसास दिलाने के बजाय दृस्टिद्युम की कमज़ोरियों के बारे में पूछना चाहिए था।
ये जानने का प्रयास करना चाहिए था कि ऐसा कौन सा ज्ञान है जो कौरवों के पास है और दृस्टिद्युम के पास नहीं है। लेकिन अपने अभद्र व्यवहार और अहम के कारण दुर्योधन ने गुरु द्रोणाचार्य से दृस्टिद्युम की कमजोरियों के जानने के बजाए, उलटा उन्हें ही ताना देकर उनका अपमान करके उनके साहस कम करने का काम किया।
यहाँ पर हम गीता के इस श्लोक से ये समझ सकते हैं कि जीत के लिए हमें अपने कॉम्पिटिशन में खड़े व्यक्ति की कमियों का पता लगाना चाहिए, उसी को ध्यान में रखते हुए अपने प्लान को बनाना चाहिए ताकि आपकी जीत की गुंजाइश और भी बढ़ जाए।
वहीं दूसरी ओर जीत के लिए एक सीख ये भी है कि अपने विरोधी को अपनी कमज़ोरी का एहसास ना होने दें क्योंकि फिर आपकी कमज़ोरी उसकी ताकत बन जाएगी। इसलिए सफलता के लिए अपनी और विरोधी दोनों की ताकत और कमज़ोरी को बड़े ही ध्यान से समझना चाहिए। उसी के हिसाब से रणनीति बनानी चाहिए तभी आपको जीत हासिल होगी।
चाणक्य पंडित को जब नंदा साम्राज्य को मिटाकर मौर्य साम्राज्य को स्थापित करना था तब उन्होंने सबसे पहले अपनी कमजोरी को समझा, वो जानते थे युद्ध करके वो नंदा साम्राज्य को हरा नहीं सकते क्योंकि उनके पास सेना नहीं है। तब उन्होंने अपनी एक ताकत को बनाया, कुछ लड़कियों को बचपन से थोड़ा थोड़ा ज़हर देकर विषकन्या में परिवर्तित किया।
बाद में उन्हें कन्याओं को नंदा साम्राज्य के राजाओं के पास भेजा, अय्याशी में चूर नंदा साम्राज्य के राजा उन कन्याओं के रूप जाल में फंस गए, जिसका नतीजा ये हुआ कि उन कन्याओं ने अपने केवल एक ही चुंबन से उन राजाओं का अंत कर दिया। इससे कहानी से पता चलता है कि अगर अपनी ताकत और कमज़ोरी के साथ साथ अगर दुश्मन की ताकत और कमज़ोरी को भी समझ लिया जाए तो सफलता बड़ी आसानी से हासिल की जा सकती है।
बिजनेस के क्षेत्र में भी यही सीख काम आती है। मार्केट में मौजूद अपने कॉम्पिटीटर की ताकत और कमज़ोरियों का अध्ययन करके अपनी प्लानिंग करनी चाहिए। इससे आप समझ पाएंगे की कौन-सी परिस्थिति में आपका कॉम्पिटीटर कैसे काम करेगा। आपकी यही दूरदर्शिता आपकी सक्सेस का रास्ता बनेगी और आप जल्दी से जल्दी अपनी सफलता के पास पहुँच जायेंगे। आज के समय में अपने बिजनेस की समस्यायों को सुलझाने के लिए आप बीबी कोचकी भी हेल्प ले सकते है.
आज के समय में किसी कम्पनी की कमियां अगर आपको समझनी हैं तो उसके सोशल मीडिया अकाउंट के कमेंट्स मात्र को देखकर कमियों का अंदाजा लगा सकते हैं। उसके प्रोडक्ट के रिव्यूज को देखिये, आपको बड़ी आसानी से समझ आ जायेगा कि आपके कॉम्पिटिटर की कम्पनी की कमियां क्या हैं? जिसके बाद उन्हीं के सुधार के साथ आप खुद को मार्केट में बेहतर ढंग से साबित कर सकते हैं।
दुर्योधन को भी महाभारत के युद्ध में यही करना चाहिए था। गुरु द्रोण को ताना कसने के बजाय उनके अनुभव का फायदा उठाते हुए पांडवों की कमियां पता करनी चाहिए थी। साथ ही अपनी पूरी शक्ति के साथ उन पर वार करना चाहिए था। लेकिन ऐसा ना करने का नतीजा आज पूरा संसार जानता है।